geeta gyaan
क्यों व्यर्थ चिंता करते हो?
क्यों किसी से डरते हो?
कौन तुम्हे मार सकता है?
आत्मा ना पैदा होती है ना मरती है
जो हुआ....
अच्छा हुआ, जो होगा, वह भी अच्छा
ही होगा
तुम भूत
के लिए पश्चयताप ना करो, ना ही भविष्य की चिंता करो.
वर्तमान
चल रहा है उसका ध्यान रखो.
तुम्हारा
क्या गया जो तुम रोते हो?
तुम क्या
लाए थे जो तुमने खो दिया?
तुमने
क्या पैदा किया जो नष्ट हो गया?
जो लिया
यहीं से लिया, जो दिया यहीं पर दिया।
खाली
हाथ आये खाली हाथ चले.
जो आज
तुम्हारा है, कल किसी और का था और परसों किसी और का होगा।
तुम इसे अपना समझ कर ख़ुशी में इतरा रहे हो बस यही प्रसन्ता तुम्हारे दुखों का कारण
है.
परिवर्तन संसार का नियम है, जिसे तुम मृत्यु
समझते हो वही तो जीवन है!
एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो , दूसरे ही क्षण
तुम दरिद्र हो जाते हो!
तेरा मेरा छोटा बड़ा, अपना परया , मैं से मिटा दो , विचार से हटा दो फिर सब तुम्हारा है और तुम सबके
!
ना यह शरीर तुम्हारा
है, ना
तुम इस शरीर के हो!
यह अग्नी , जल , वायु , पृथ्वी , आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा!
आत्मा
स्थिर है
फिर तुम क्या हो
?
तुम अपने आप को भगवान को अर्पित करते चलो
, यही सबसे उत्तम सहारा है ! जो
इस शेयर को जनता है वह भय , चिंता , शौक से मुक्त रहता है
!
जो कुछ भी तू करता है उसे भगवन को अर्पित
करता चल ! ऐसा करने से तू सदा जीवन - मुक्ति का आनंद अनुभव करेगा !
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